मास्क लगे चेहरे हैं, दर्द बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज इंसान से भय खाता हूं
छोटी मोटी जरूरतों को नजरअंदाज कर जाता हूं,
लगी कुछ ऐसी नज़र सहमा हुआ है सारा शहर
व्यवस्थाओं के मेले में मुलभुत सुविधाएँ नहीं पाता हूं
अपनों के खो जाने के गम में डूब जाता हूं,
पीठ में छुरी सा चांद, चीन गया रेखा फांद
परिजनों से मिलने को बार बार तरस जाता हूं
पर घर में ही रुक जाता हूं
कोरोना को हराता हूं,
खांसती साँसों से फूटेंगे वासंती स्वर
इस महामारी की आपाधापी में
धैर्य से ही बदलेगा मंजर
झर जाएंगे सब पीले पात ख़तम होगी ये भयावह रात
दूर मैं,कोरोना की हार देख पाता हूं
वैक्सीन की आस में
घर में ही रुक जाता हूँ ,
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
जो चले गए उनकी व्यथा पलकों पर ठिठकी
कोरोना से हार नहीं मानूंगा, मगर इससे रार भी नहीं ठानूंगा,
कोरोना के कपाल पे जीत की इबारत लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं |
रार भी नहीं ठानूंगा😇😇👍👍
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