Sunday 17 May 2020

मजदूर

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रोटी तुम्हें गांव से शहर की ओर ले गई थी
अब वही तुम्हें
शहरों से गांव की ओर खींच रही है
मुल्क के लिए अभी यह मुद्दा है
लाख टके का सवाल है
हर तरफ मचा बवाल है |
सेंक रहे सब तुम्हारी रोटी पर अपनी अपनी रोटी
सुना रहे एक दूसरे को खरी खोटी
सुबह शाम करते तुम्हारी चिंता
एक दूसरे की करते निंदा |
तुम्हारे पांव में पड़ते छाले
पटरी पर हैं पड़े निवाले
मीडिया के तुम राज दुलारे |
आसमान के नीचे रहकर


न जाने कितनों के लिए बनाए तुमने आशियाने
मुसीबत की इस घड़ी में कोई नहीं दे रहा तुम्हें सर छुपाने
पर होता गर अभी चुनाव
बिछाए जाते तुम्हारे लिए पलक पांवड़े
नहीं करनी पड़ती तुम्हें टिकटों के लिए मारामारी
सब आते तुम्हें रिझाने
क्यों गए थे बाहर कमाने
अब नहीं होगा पलायन
गर सरकार में आ गए हम
बात तुम्हारे वोटों की होती
तुम्हें लोकतंत्र का फरिश्ता बताया जाता
पर तुम्हारी बदकिस्मती
अभी कहीं नहीं हो रहे चुनाव
अभी बात वोट की नहीं
तुम्हारे पेट की है
वोट तो उनका होता
पर पेट तो तुम्हारा है
भगवान भरोसे आए थे
भगवान का ही सहारा है |

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