Thursday 9 April 2020

कुत्ते और इंसान

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यूँ वह घर के बाहर मंडराता
पहरेदारी करता
वफादारी का प्रतीक
पर उसका इंसानों को छू जाना अपवित्र समझा जाता था
सीमाएं तय थीं उसके लिए
दरवाजे के बाहर
फिर
उसके गले में पट्टा लगा
वो मुख्य द्वार के अंदर आया
बहुत समय तक यूँ ही चलता रहा
न उसके लिए इंसान ने सीमाएं बदली 
न अपना मन 

समय का पहिया घूमा
इंसान इंसान से ऊबने लगा
एक दूसरे से कटने लगा
भरोसा कम होने लगा
फिर उसके दिन फिरे
उसके अच्छे अच्छे नाम रखे जाने लगे
उसे उसकी जाति से सम्बोधित करना असभ्य माना जाने लगा 
उसके लिए सीमाएं तोड़ी जाने लगीं
मुख्य द्वार से डाइनिंग हॉल ,
बड़े घरों का आउट हाउस भी उसके लिए कम्फ़र्टेबल नहीं रहा
क्योंकि उसका स्टेटस अब इसकी इजाजत नहीं देता
अब वो बेड रूम में आ गया
कुछ जगहों पर घरों में इंसान एक और वो दो रहने लगे
हां उसकी रखवाली के लिए शिफ्टों में चार लोग रखे जाने लगे
देखिये समय का चक्र
अब इंसान उसकी रखवाली करने लगे
पॉश इलाकों में तो जगह जगह उसके लिए क्लिनिक और डॉक्टर नजर आने लगे
अब मर्सीडीज़ में मालकिन की गोद में बैठकर शहर घूमता 
अपने स्टेटस पर गर्व करता
इंसानों को हिकारत भरी नजरों से देखने लगा
यह परिवर्तन समझना कठिन है कि
क्या मनुष्य सभ्य होकर,कुत्तों की ज्यादा क़द्र करने लगा या
एप्पल मेन,मैंगो पीपल को जानवरों से भी बदतर समझने लगा ? 

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