Tuesday 21 January 2020

भीष्म का द्वन्द

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भीष्म तुम्हारा त्याग बड़ा महान था
तुमने सत्यवती को दिया वचन निभाया

शपथ ली थी तुमने
अविवाहित रहने की
आजीवन हस्तिनापुर के संरक्षक बने रहने की
अम्बा पर रीझकर भी तुम अपने शपथ पर कायम रहे



देवव्रत से भीष्म,भीष्म से भीष्म पितामह
कुरु वंश के महा प्रतापी पितामह
तुम्हारे प्रताप ने क्या क्या देखा

भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण
पांडवों की सत्ता से बेदखली
दुर्योधन का दुःसाहस
दुःशासन की निर्लज्जता
कर्ण का दर्प
धृतराष्ट्र का पुत्र मोह

सब तुम्हारे सामने हुआ
पर तुम अपने शपथ से डिगे नहीं

पर ये दुविधा क्यों थी भीष्म
तुम्हारी इच्छाएँ,तुम्हारी कामना तुम्हारा चिंतन
इन सबके विपरीत क्यों रहा तुम्हारा कर्म

आजीवन वैरागी होकर भी हस्तिनापुर की गृहस्थी ढोते रहे
जिनसे प्रेम किया उनको ठुकराया
शरीर कौरवों के साथ और मन पांडवों के साथ
तुम्हारा जीवन तो द्वंदों का पुंज रहा भीष्म

उस द्वन्द में अधर्म फलता-फूलता रहा 
युद्ध भूमि में भी गांडीव पर प्रत्यंचा चढ़ाते हुए
तुम सशंकित रहे

तुमने धर्म का साथ दिया,अधर्म का या सत्यवती को दिया वचन निभाया ?
सच तो यह है कि तुम न तो धर्म के साथ रह पाए
न अधर्म और अधर्मियों का नाश कर पाए

जिस कुरु वंश को बचाने के लिए तुम जीवन भर द्वंदात्मक रहे
तुम्हारे जाने के बाद वो भी तो नहीं रहा
धर्म,शपथ और द्वन्द की बेड़ियों में जकड़े ही तुम मृत्यु को प्राप्त हुए

विडंबना देखो भीष्म कि तुम्हारा अंत न पुरुष ने किया न महिला ने
मृत्युशैया पर भी तुम द्वंद्व में रहे।। 

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