झारखण्ड के चुनाव परिणाम कमोबेश उसी एग्जिट पोल के मुताबिक आए जिस एग्जिट पोल को विपक्ष पिछले कुछ विधान सभा चुनावों से पहले तक ख़ारिज करता रहा था | बकौल विपक्ष और मीडिया द्वारा सुशोभित चाणक्य (अमित शाह ) नीति फेल हो गई,भाजपा 65 पार नहीं पहुँच सकी | जेएमएम की अगुवाई वाले विपक्ष ने ऐसी किसी संख्या को पार करने के दावे नहीं किए थे सो उसे सिर्फ 41 पार करना था जो उसने आसानी से कर लिया | बहुत दिनों बाद भारतीय राजनीति में ऐसा देखने को मिला जिसमें पार्टी के एक तजुर्बेकार वरिष्ठ नेता ने अपनी ही पार्टी के घमंडी और नकारे मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री मोदी के सहारे दोबारा मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोने वाले को बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चारों खाने चित कर दिया |
महाराष्ट्र में शिव सेना के 180 डिग्री वैचारिक यू टर्न लेने के बाद पराक्रमी भाजपा के सामने पस्त विपक्ष को एक और राज्य में संजीवनी मिल गई | इन चुनाव परिणामों के सन्देश बहुत दूरगामी होंगे या केंद्र पर इसका कोई असर पड़ेगा इसकी दूर दूर तक कोई संभावना नहीं दिख रही है,लेकिन 2017 में देश के 70 % भू भाग पर राज करने वाली भाजपा आज अगर 32 % पर आ गई तो इसके कारणों की पड़ताल करना लाजमी जान पड़ता है |
कामयाब और करिश्माई मोदी उसी भाजपा में पले,बढ़े,तपे हैं जिसमें,रघुबर दास,मनोहर लाल,रमण सिंह,शिवराज सिंह,देवेंद्र फड़नवीस,वसुंधरा राजे जैसे नाकामयाब पूर्व मुख्यमंत्री (खट्टर को छोड़कर ) पले बढ़े हैं | नाकामयाब इसलिए भी क्योंकि राज्य और केंद्र में जब एक ही पार्टी की सरकार हो तो राज्य सरकार को केंद्र से भरपूर फंड मिलने में कोई दिक्कत नहीं होती बशर्ते आपको पता हो कि हमें कहाँ कैसे और किन जनकल्याणकारी योजनाओं में पैसा लगाना है और उसका लाभ जनता तक पहुँचाना है | इसके बाद भी अगर आप अपने बूते चुनाव नहीं जीता पाते तो इसे नाकामयाबी ही कही जाएगी |
केंद्र में 2014 में सत्तासीन होने के बाद मोदी जी ने अपना एजेंडा तय कर लिया और उसपर मजबूती से आगे बढ़े और इस एजेंडे को मई 2019 में जनता की प्रचंड स्वीकार्यता भी मिली | लेकिन भाजपा के मुख्यमंत्रियों ने अपने पांच साल के लिए कोई एजेंडा तय नहीं किया | वो सत्ता में आए पांच साल रहे और चले गए,इनमें न तो दूरदर्शिता थी और न ही वो ओज लिहाजा विपक्ष तो विपक्ष प्रशासन भी इनपर हावी हो गया नतीजतन जनता इनसे कटती गई |
दूसरा - अगर अमित शाह के कामकाज को देखें तो यह स्पष्ट है कि 2024 में मोदी जी उनको अपने उत्तराधिकारी के तौर पर आगे बढ़ा रहे और इस बात पर कहीं कोई मतभेद भी नजर नहीं आता | सरकार और संगठन के बीच जो शानदार समन्वय केंद्र स्तर पर दिखा उसका लेश मात्र भी राज्यों में दृष्टिगोचर नहीं हुआ,जो संगठन में थे वो बेमन से काम करते हुए सरकार में आने के मंसूबे पाले हुए थे और जो सरकार में थे वो इनके पर कतरने में व्यस्त रहे वरना कोई कारण नहीं था कि केंद्र और राज्य दोनों में सत्तासीन होते हुए भी राज्यों में एक एक कर सत्ता भाजपा के हाथ से फिसल रही | राज्य स्तरीय नेतृत्व ने अपने तले कोई दूसरा नेता नहीं पनपने दिया |
तीसरा - मोदी एक हैं और ऐसा भी नहीं है कि मोदी नहीं चाहते कि भाजपा में और मोदी पैदा हों लेकिन यह हो नहीं पाया है | दरअसल मोदी का मतलब दृढ़ता,पराक्रम,ओजस्वी,ईमानदार,वैचारिक समर्पण है जो भाजपा के किसी भी मुख्यमंत्री में दूर दूर तक नजर नहीं आता | कुछ पर भ्रस्टाचार के आरोप लगे,कुछ पर परिवारवाद के तो ऐसे में सिर्फ मोदी नाम के सहारे दोबारा गद्दी प्राप्त करना बेहद दूरह कार्य है वो तब जब विपक्ष बिना किसी वैचारिक एकता के सिर्फ भाजपा विरोध के नाम पर एक गठबंधन के तले आ जाएं |
चौथा - यह जरुरी नहीं कि जो मुद्दे देश के लिए जरुरी हों वो राज्यों में भी जनता को प्रभावित करेंगे,खासकर झारखण्ड जैसे अमीर ससाधनों वाले गरीब राज्य में | यक़ीनन 370,तीन तलाक,राम मंदिर,नागरिकता कानून मोदी सरकार के साहसिक और क्रन्तिकारी फैसले हैं लेकिन जिस राज्य में अधिकांश जनता दो वक्त की रोटी के लिए संघर्षरत हो वहाँ ऐसी क्रांतियों के बल पर वोट की उम्मीद करना बेमानी है |
दरअसल कोई भी साम्राज्य या अर्थव्यवस्था जब अपने चरम बिंदु पर पहुँचती है तो फिर एक सीमा के बाद धीरे धीरे उसका अवसान होने लगता है | तो क्या भाजपा के उत्थान का समय अब समाप्त हो गया ? 2014 से भाजपा ने जिस राजनीतिक और वैचारिक साम्राज्य विस्तार की नींव रखी तो इस क्रम में केंद्र में दोबारा सत्तासीन होने के अलावा त्रिपुरा,असम और बंगाल जैसे राज्यों में अपना राजनीतिक परचम लहराया जो कुछ समय पहले तक अकल्पनीय प्रतीत होता था | कश्मीर से कन्याकुमारी तक कमल खिलाने के बाद उसे यथावत रखना एक बड़ी चुनौती है,चूँकि भाजपा में कांग्रेस की तरह चारण और एक परिवार के प्रति चापलुसिया व्यवस्था नहीं है इसलिए कोई भी अदना सा कार्यकर्ता अपनी मेहनत से शीर्ष पद पर पहुंच सकता है,लेकिन अब जिस तरह से विपक्ष भाजपा के खिलाफ लामबंद हो रहा है उसमें पार्टी को यह देखना होगा कि ऐसे लोगों के हाथ में कमान दी जाय जो न सिर्फ भाजपा के वैचारिक खेवनहार हों बल्कि शासन प्रशासन में दूरदर्शी,ईमानदार और परिवारवाद के मोह से भी दूर रहें |
पुनश्चः
हालिया तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को हरियाणा में 31 सीट,महाराष्ट्र में 44 और झारखण्ड में 16 सीटें मिली हैं जबकि भाजपा को अकेले महाराष्ट्र में 105 सीटें मिली हैं | कांग्रेस किस बात पर खुश हो रही पता नहीं | एक समय था जब कांग्रेस चुनाव रूपी शादी में दूल्हा या दुल्हन हुआ करती थी अब वो सिर्फ घोड़ी बनकर खुश है तो इसे 130 साल पुरानी पार्टी के लिए दुर्भाग्य ही कहा जाय |
महाराष्ट्र में शिव सेना के 180 डिग्री वैचारिक यू टर्न लेने के बाद पराक्रमी भाजपा के सामने पस्त विपक्ष को एक और राज्य में संजीवनी मिल गई | इन चुनाव परिणामों के सन्देश बहुत दूरगामी होंगे या केंद्र पर इसका कोई असर पड़ेगा इसकी दूर दूर तक कोई संभावना नहीं दिख रही है,लेकिन 2017 में देश के 70 % भू भाग पर राज करने वाली भाजपा आज अगर 32 % पर आ गई तो इसके कारणों की पड़ताल करना लाजमी जान पड़ता है |
कामयाब और करिश्माई मोदी उसी भाजपा में पले,बढ़े,तपे हैं जिसमें,रघुबर दास,मनोहर लाल,रमण सिंह,शिवराज सिंह,देवेंद्र फड़नवीस,वसुंधरा राजे जैसे नाकामयाब पूर्व मुख्यमंत्री (खट्टर को छोड़कर ) पले बढ़े हैं | नाकामयाब इसलिए भी क्योंकि राज्य और केंद्र में जब एक ही पार्टी की सरकार हो तो राज्य सरकार को केंद्र से भरपूर फंड मिलने में कोई दिक्कत नहीं होती बशर्ते आपको पता हो कि हमें कहाँ कैसे और किन जनकल्याणकारी योजनाओं में पैसा लगाना है और उसका लाभ जनता तक पहुँचाना है | इसके बाद भी अगर आप अपने बूते चुनाव नहीं जीता पाते तो इसे नाकामयाबी ही कही जाएगी |
केंद्र में 2014 में सत्तासीन होने के बाद मोदी जी ने अपना एजेंडा तय कर लिया और उसपर मजबूती से आगे बढ़े और इस एजेंडे को मई 2019 में जनता की प्रचंड स्वीकार्यता भी मिली | लेकिन भाजपा के मुख्यमंत्रियों ने अपने पांच साल के लिए कोई एजेंडा तय नहीं किया | वो सत्ता में आए पांच साल रहे और चले गए,इनमें न तो दूरदर्शिता थी और न ही वो ओज लिहाजा विपक्ष तो विपक्ष प्रशासन भी इनपर हावी हो गया नतीजतन जनता इनसे कटती गई |
दूसरा - अगर अमित शाह के कामकाज को देखें तो यह स्पष्ट है कि 2024 में मोदी जी उनको अपने उत्तराधिकारी के तौर पर आगे बढ़ा रहे और इस बात पर कहीं कोई मतभेद भी नजर नहीं आता | सरकार और संगठन के बीच जो शानदार समन्वय केंद्र स्तर पर दिखा उसका लेश मात्र भी राज्यों में दृष्टिगोचर नहीं हुआ,जो संगठन में थे वो बेमन से काम करते हुए सरकार में आने के मंसूबे पाले हुए थे और जो सरकार में थे वो इनके पर कतरने में व्यस्त रहे वरना कोई कारण नहीं था कि केंद्र और राज्य दोनों में सत्तासीन होते हुए भी राज्यों में एक एक कर सत्ता भाजपा के हाथ से फिसल रही | राज्य स्तरीय नेतृत्व ने अपने तले कोई दूसरा नेता नहीं पनपने दिया |
तीसरा - मोदी एक हैं और ऐसा भी नहीं है कि मोदी नहीं चाहते कि भाजपा में और मोदी पैदा हों लेकिन यह हो नहीं पाया है | दरअसल मोदी का मतलब दृढ़ता,पराक्रम,ओजस्वी,ईमानदार,वैचारिक समर्पण है जो भाजपा के किसी भी मुख्यमंत्री में दूर दूर तक नजर नहीं आता | कुछ पर भ्रस्टाचार के आरोप लगे,कुछ पर परिवारवाद के तो ऐसे में सिर्फ मोदी नाम के सहारे दोबारा गद्दी प्राप्त करना बेहद दूरह कार्य है वो तब जब विपक्ष बिना किसी वैचारिक एकता के सिर्फ भाजपा विरोध के नाम पर एक गठबंधन के तले आ जाएं |
चौथा - यह जरुरी नहीं कि जो मुद्दे देश के लिए जरुरी हों वो राज्यों में भी जनता को प्रभावित करेंगे,खासकर झारखण्ड जैसे अमीर ससाधनों वाले गरीब राज्य में | यक़ीनन 370,तीन तलाक,राम मंदिर,नागरिकता कानून मोदी सरकार के साहसिक और क्रन्तिकारी फैसले हैं लेकिन जिस राज्य में अधिकांश जनता दो वक्त की रोटी के लिए संघर्षरत हो वहाँ ऐसी क्रांतियों के बल पर वोट की उम्मीद करना बेमानी है |
दरअसल कोई भी साम्राज्य या अर्थव्यवस्था जब अपने चरम बिंदु पर पहुँचती है तो फिर एक सीमा के बाद धीरे धीरे उसका अवसान होने लगता है | तो क्या भाजपा के उत्थान का समय अब समाप्त हो गया ? 2014 से भाजपा ने जिस राजनीतिक और वैचारिक साम्राज्य विस्तार की नींव रखी तो इस क्रम में केंद्र में दोबारा सत्तासीन होने के अलावा त्रिपुरा,असम और बंगाल जैसे राज्यों में अपना राजनीतिक परचम लहराया जो कुछ समय पहले तक अकल्पनीय प्रतीत होता था | कश्मीर से कन्याकुमारी तक कमल खिलाने के बाद उसे यथावत रखना एक बड़ी चुनौती है,चूँकि भाजपा में कांग्रेस की तरह चारण और एक परिवार के प्रति चापलुसिया व्यवस्था नहीं है इसलिए कोई भी अदना सा कार्यकर्ता अपनी मेहनत से शीर्ष पद पर पहुंच सकता है,लेकिन अब जिस तरह से विपक्ष भाजपा के खिलाफ लामबंद हो रहा है उसमें पार्टी को यह देखना होगा कि ऐसे लोगों के हाथ में कमान दी जाय जो न सिर्फ भाजपा के वैचारिक खेवनहार हों बल्कि शासन प्रशासन में दूरदर्शी,ईमानदार और परिवारवाद के मोह से भी दूर रहें |
पुनश्चः
हालिया तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को हरियाणा में 31 सीट,महाराष्ट्र में 44 और झारखण्ड में 16 सीटें मिली हैं जबकि भाजपा को अकेले महाराष्ट्र में 105 सीटें मिली हैं | कांग्रेस किस बात पर खुश हो रही पता नहीं | एक समय था जब कांग्रेस चुनाव रूपी शादी में दूल्हा या दुल्हन हुआ करती थी अब वो सिर्फ घोड़ी बनकर खुश है तो इसे 130 साल पुरानी पार्टी के लिए दुर्भाग्य ही कहा जाय |
Shandar visleshan vivek ji
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