Sunday 22 September 2019

बरगद

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बरगद

बरगद सदियों से खड़ा था वहाँ,
सभ्यताओं,संस्कृतियों का मूक वाहक

मनुष्य के विकास क्रम का साक्षी
हर ऋतु में अविचल

महिलाएं,बूढ़े बरगद को पूजतीं
अपने पतियों की लम्बी आयु की दुआ मांगती
दादी,नानी की कहानियों में भी अक्सर उसका जिक्र आता

न जाने कितने तूफान झेले उसने
लोग उसकी छांव तले
उसके आस पास,पले,बढ़े
शाखाओं पर झूला झूले
गिरे,धूल धूसरित हुए

वक़्त की आंच में सब गाढ़ा हुआ



छोटे बड़े बन गए
समझदार और सभ्य भी
आधुनिकता उनमें और वो आधुनिकता में घुल गए,

पूजा खत्म हुई और बचपन भी
दादी-नानी के साथ उनकी कहानी भी

लेकिन बरगद अब भी अपनी ठसक लिए बेतरतीब सा जड़वत है
लंबा, चौड़ा, सीना ताने, मदमस्त, बेमेल सा आधुनिकता में बाधक


फिर एक दिन सभ्यता ने असभ्यता को ख़त्म करने की ठानी

सदियां एक दिन में ख़त्म
विध्वंस सृजन पर भारी पड़ा

सभ्यता की इमारत बड़ी हो चुकी है
अब बालकनी से पौधे झांकते हैं
उन्हीं में से एक छोटा बरगद भी
एक और सदी के इंतजार में।।

2 comments:

  1. Bahut sundar aur saarthak.
    Saadar
    Pranjal Dhar

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  2. शुक्रिया प्रांजल भाई |

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