Sunday 8 September 2019

मैं रवीश कुमार यह अवार्ड नहीं लौटाऊंगा

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नमस्कार मैं रवीश कुमार,आज मैं बेहद खुश हूँ कि आखिरकार देश न सही विदेश ने मेरी असाधारण पत्रकार होने की पहचान पर मोहर लगाया और मुझे रमण मैग्ससे अवार्ड दिया | असाधारण इसलिए क्योंकि साधारण पत्रकार सिर्फ खबर दिखाते और चलाते हैं लेकिन मैं खबर के पीछे,जनमत बनाता हूँ और अपना राजनीतिक वैचारिक एजेंडा भी चलाता हूँ |


                          इस देश में तो वैसे भी अब अवार्डों की विश्वसनीयता रही नहीं | जिसे देखिये वही अवार्ड पा जा रहा है,पाने वालों में अधिकांश वो लोग हैं जो इस देश के पुष्पित पल्लवित लोकतंत्र में खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं ,लेकिन एक दूसरा तबका ऐसा है और मुझे लगता है कि इसी बुद्धिजीवी तबके की वजह से देश में आज लोकतंत्र जिंदा है | ये वो लोग हैं,जिन्हें संविधान में आस्था है,और जब इनकी लिजलिजी और सुविधाजनक आस्था टूटती है तो इ लोग सहिष्णुता की खोल में असहिष्णु हो जाते हैं | और वैसे भी जितने लोगों को अवार्ड मिल रहे हैं उससे ज्यादा लोग लौटा रहे हैं |
                        इस देश में लोकतंत्र और संविधान खतरे में है,जिसका जिक्र और जिसकी चिंता मैं अपने प्राइम टाइम में पिछले 5,6 वर्षों से कर रहा हूँ | और इसी वजह से मैं बुद्धू बक्से पर एक तरह से विपक्ष की नुमाइंदगी भी कर रहा हूँ | इस देश के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते यह मेरा कर्त्तव्य है कि अस्त व्यस्त और पस्त पड़े लुंजपुंज विपक्ष की आवाज बनूँ क्योंकि अगर मैं ऐसा नहीं करूँगा या करता तो देश में एक बार फिर आपातकाल लगने का खतरा बढ़ जाता |
            जब मुझे लगा कि मेरी आवाज सरकार तक नहीं पहुँच रही या मोदी सरकार मुझे इग्नोर कर रही तो मैंने अपने कार्यक्रमों में विरोध स्वरुप टीवी स्क्रीन को काला कर खुद को झक सफ़ेद और वैचारिक रूप से निष्पक्ष दिखाने की कोशिश की | खैर जैसे ही मैंने यह पुरस्कार ग्रहण किया मुझे लगा कि इस देश में लोकतंत्र जीवंत रूप से प्रवाहमान है,संविधान भी खतरे में नहीं है अगर ऐसा होता तो सरकार कभी ना कभी किसी न किसी केस में फंसाकर मुझे जेल में डाल देती | जैसे लालू यादव,चिदंबरम,अमित जोगी वगैरह को डाला है |
                                        विडंबना देखिये कि मुझे जो पहचान इस सरकार,व्यवस्था को कोसते हुए,सरकार की हर नीति नियति में खोट निकालते हुए पिछले पांच छह वर्षों में मिली है वो आशातीत है | मुझे ख़ुशी है कि मैं ऐसा कर पाया | यह भी कमाल की बात है कि मुझे जिस टीवी से इतनी शोहरत,दौलत,और इज़्ज़त ( इसमें मुझे थोड़ा संदेह है ) मिली मैंने अपने कार्यक्रम में लोगों से उसी को देखने से मना किया | लेकिन मैंने खुद टीवी नहीं छोड़ा,और न देश छोड़कर गया | मैं चाहता तो आराम से राजनीति में जा सकता था,लेकिन मैंने आंसू तोष की हालत देखकर अपना मन बदल लिया | टीवी पर रहते हुए आप राजनीति कर सकते हैं अपना मनपसंद एजेंडा पत्रकारिता की आड़ में चला सकते हैं,लेकिन राजनीति में रहते हुए ऐसा संभव नहीं होता |
अच्छा एक बात और देश में मेरे डर के माहौल ने मेरा पीछा मनीला में भी नहीं छोड़ा और मैंने डरते डरते ही अवार्ड ग्रहण किया |
खैर अब जबकि इस सरकार के मेरे अंध विरोध को एक विदेशी सम्मान और पहचान मिली है तो अपने अवार्ड वापसी गैंग वाले परम आदरणीय मित्रों को यह बताना चाहता हूँ कि मैं ये अवार्ड कभी वापस नहीं करूँगा हाँ अपना एजेंडा आगे बढ़ाता रहूँगा पत्रकारिता के नाम पर विपक्ष का पक्ष रखता रहूंगा |
   पुनश्चः
कल बगुला भगत पल्लव बागला का विज्ञान के प्रति पागलपन देख के मुझे बहुत ख़ुशी हुई | दरअसल मैं जब अपने जैसे लोगों जो की इस देश में गिने चुने ही हैं देखता हूँ तो मुझे लगता है कि देश में लोकतंत्र अभी जिंदा है हाँ हम अपने कृत्यों पर कतई नहीं शर्मिंदा हैं |
           

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