सुनो,मैं प्रलयंकारी हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए,
इस्तीफा दूंगा\दूंगी,
तुमलोग स्वीकार मत करना,
करना केवल चीत्कार,
कहना कौन बनेगा खेवनहार ?
हार पर होगा गंभीर चिंतन मंथन,
सौगंध गंगा मैया की
अबकी आमूलचूल होगा परिवर्तन,
पिछले कई बार की तरह इस बार भी कमिटियों का होगा गठन,
कुछ बलि के बकरे ढूंढे जाएंगे,
हम उनको हटाएंगे,
अपनी नाकामियों को छुपाएंगे
परिवार को बचाएंगे
सेकुलरिज्म,समाजवाद,संविधान,लोकतंत्र का सहारा लेकर
अगले चुनावों के लिए कुछ लक्ष्य भेदी बाण चलाएंगे |
देश तो बचा हुआ है,बचा रहेगा,
परिवार बचना चाहिए,
निष्ठा दिखाओ,
नहीं नहीं,जनता,देश और संविधान के प्रति नहीं,
परिवार के प्रति,
क्या हुआ गर बिहार से बंगाल तक,गुजरात से गुड़गांव तक हो गई हमारी मिट्टी पलित,
जनता ने ध्वस्त किए हमारे अरमान,
खान मार्किट वाले भी ना आए किसी काम,
मज़बूरी थी जनादेश का करना था सम्मान,
हाथ,हाथी,साईकिल,लालटेन
सब हो गए बेकाम |
पिछले पांच सालों में हमने क्या क्या नहीं किया
गर्भ से कब्र तक हर बात के लिए केंद्र को कोसते रहे
लोकतंत्र,संविधान,देश,सहिष्णुता सब खतरे में पड़े थे,
पहले इसे बचाना था
फिर जनता के बीच भी जाना था,
सोचा था हमने,सब धर्मनिरपेक्षता के झण्डेबरदार
एक छत के नीचे आएँगे,
चौकीदार को चोर और नीच बताएंगे,
भगवा वालों को पानी पिलाएंगे,
उनके नए भारत की काट के लिए
हम हर महीने एक नया पीएम बनाएँगे
मगर ये हो ना सका,
हमने जनता को Granted लिया
जनता ने हमें Unwanted किया
सपनों को जमींदोज कर दिया |
इस्तीफों का खेल यूँ ही चलता रहेगा,
पर लगता है
अब सत्ता में परिवारवाद का खेल नहीं चलेगा |
इस्तीफा दूंगा\दूंगी,
तुमलोग स्वीकार मत करना,
करना केवल चीत्कार,
कहना कौन बनेगा खेवनहार ?
हार पर होगा गंभीर चिंतन मंथन,
सौगंध गंगा मैया की
अबकी आमूलचूल होगा परिवर्तन,
पिछले कई बार की तरह इस बार भी कमिटियों का होगा गठन,
कुछ बलि के बकरे ढूंढे जाएंगे,
हम उनको हटाएंगे,
अपनी नाकामियों को छुपाएंगे
परिवार को बचाएंगे
सेकुलरिज्म,समाजवाद,संविधान,लोकतंत्र का सहारा लेकर
अगले चुनावों के लिए कुछ लक्ष्य भेदी बाण चलाएंगे |
देश तो बचा हुआ है,बचा रहेगा,
परिवार बचना चाहिए,
निष्ठा दिखाओ,
नहीं नहीं,जनता,देश और संविधान के प्रति नहीं,
परिवार के प्रति,
क्या हुआ गर बिहार से बंगाल तक,गुजरात से गुड़गांव तक हो गई हमारी मिट्टी पलित,
जनता ने ध्वस्त किए हमारे अरमान,
खान मार्किट वाले भी ना आए किसी काम,
मज़बूरी थी जनादेश का करना था सम्मान,
हाथ,हाथी,साईकिल,लालटेन
सब हो गए बेकाम |
पिछले पांच सालों में हमने क्या क्या नहीं किया
गर्भ से कब्र तक हर बात के लिए केंद्र को कोसते रहे
लोकतंत्र,संविधान,देश,सहिष्णुता सब खतरे में पड़े थे,
पहले इसे बचाना था
फिर जनता के बीच भी जाना था,
सोचा था हमने,सब धर्मनिरपेक्षता के झण्डेबरदार
एक छत के नीचे आएँगे,
चौकीदार को चोर और नीच बताएंगे,
भगवा वालों को पानी पिलाएंगे,
उनके नए भारत की काट के लिए
हम हर महीने एक नया पीएम बनाएँगे
मगर ये हो ना सका,
हमने जनता को Granted लिया
जनता ने हमें Unwanted किया
सपनों को जमींदोज कर दिया |
इस्तीफों का खेल यूँ ही चलता रहेगा,
पर लगता है
अब सत्ता में परिवारवाद का खेल नहीं चलेगा |