Sunday 12 May 2019

क्या देश में अघोषित आपातकाल लागू है ?

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क्या देश में अघोषित आपातकाल लागू है ? 

मई 2014 में जब एनडीए ने नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में प्रचंड जनादेश हासिल कर दिल्ली का राजसिंहासन संभाला तो उसके कुछ समय बाद ही भारतीय राजनीति में कुछ शब्द बहुत तेजी से उभरे और चर्चित हो गए | जैसे,हिटलर,तानाशाही,अलोकतांत्रिक,असहिष्णुता,अराजकता,अघोषित आपातकाल,आदि | ऐसा नहीं था कि भारतीय मतदाता जिसने भाजपा को दिल्ली की सत्ता के लिए स्पष्ट जनादेश दिया था इन शब्दों को पहली बार सुन रहा था,लेकिन 2014 के बाद ये शब्द रोजाना अख़बार,और टेलीविजन की सुर्खियां बनने लगे | 

विपक्ष बार-बार मोदी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए यह आरोप लगा रहा कि इस देश में अघोषित आपातकाल लागू है | यह आरोप अन्य विपक्षी दलों के अलावा वह कांग्रेस भी लगा रही जिसकी दुर्गा रूपी अवतार प्रधानमंत्री ने अपनी सत्ता बचाने को लोकतंत्र की मान मर्यादा और उसके नैतिक मूल्यों को रौंद डाला था | शायद पुराने कांग्रेसियों को आपातकाल की निरंकुशता,प्रताड़ना और भयावहता अच्छी तरह याद है | आपातकाल में लोगों के मौलिक अधिकार भंग कर दिए गए थे,न्यायपालिका की शक्तियां कम कर दी गईं थीं, प्रेस के मुँह पर ताला लगा दिया गया था,सरकार के खिलाफ किसी तरह के विरोध या प्रजातान्त्रिक मर्यादाओं के पालन की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी गई थी | इंदिरा गाँधी,कार्यपालिका,न्यायपालिका और विधायिका का एकमात्र शक्ति पुंज बन गईं थीं | कहा जाता है कि उन दिनों दिल्ली में एक व्यक्ति ने किताबों की दुकान में जाके संविधान की एक प्रति मांगी तो दुकानदार ने कहा क्षमा करें हम इस नाम की कोई पत्रिका नहीं मंगवाते | 

                                                              अब जरा हम इस दौर में आते है जिस दौर की बकौल विपक्ष अघोषित आपातकाल से तुलना कर रहा | सबसे पहले तो जिन मुखारबिंदों से यह तुलना निकल रही है वो खुद ही काफी मुखर हैं,सोशल मीडिया,पारंपरिक मीडिया हर जगह अविरलता दिख रही | प्रधानमंत्री को मौत का सौदागर,नीच,सांप,बिच्छू,महिषासुर,औरंगजेब जैसी उपमाओं से नवाजा जा रहा,ये सब जुबानी प्रक्षेपास्त्र हैं और जो मौलिक अधिकारो की श्रेणी में आते हैं,जिनपर कोई रोकटोक नहीं | ऐसा लगता है मानो मोदी जी ने इन लोगों से व्यक्तिगत उधार लिया हो और प्रधानमंत्री बनने के बाद उधार चुकाने से मुकर गए हों | 


न्यायपालिका स्वतंत्र रूप से अपना काम कर रही,ये अलग बात है कि जब भी न्यायालय का कोई फैसला सरकार के पक्ष में आता है तो विपक्ष को अघोषित आपातकाल याद आ जाता है,और जब फैसला सरकार के खिलाफ आता है तो यही लोग न्यायपालिका को सर आँखों पर उठा लेते हैं | इसे वैचारिक लिजलिजेपन से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता | 

                   अब आते हैं प्रेस की तरफ | आज मीडिया स्पष्ट रूप से,मोदी विरोध और मोदी समर्थक दो वर्गों में बंटा नजर आ रहा,एक तबका है जिसे सरकार की नीतियां,उसकी योजनाएं विकासोन्मुख लगती हैं तो दूसरा तबका नकरात्मत्का,मोदी विरोध और वैमनस्य से भरा हुआ है | इस पक्ष को अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि मोदी को प्रचंड जनादेश से इसी देश की जनता ने चुना था | मीडिया का यह तबका,किसानों की आत्महत्या,सड़कों के गड्ढे,महंगाई,बेरोजगारी हर मुद्दे के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहरता है | विरोध और नफरत की पराकाष्टा में कुछ चैनल बैकग्राउंड को काला कर देते हैं,जुबानी नफरत की तो बात ही छोड़ दीजिये | इन सब कृत्यों को करते हुए जब यह तबका कहता है कि क्या देश में अघोषित आपातकाल लगा हुआ है तो उनको आपातकाल के बाद,लाल कृष्ण आडवाणी की प्रेस पर यह टिपण्णी याद रखनी चाहिए कि, आपातकाल के दौरान आपको झुकने को कहा गया था पर आप तो रेंगने लगे | आज की स्थिति उलटी है मीडिया का एक वर्ग,येन केन प्रकारेण मोदी सरकार को बदनाम करने पर तुला है | खुलकर सरकार की आलोचना की जा रही है, क्या आपातकाल में भी किसी मीडिया संस्थान की हिम्मत थी की वह इंदिरा सरकार की आलोचना का अ भी लिख दे | 
                                                                 बुद्धिजीवियों का कोई जनाधार नहीं होता उनके पास केवल विचार होते हैं,जिनकी प्रासंगिकता और महत्व समय के साथ घटते बढ़ते रहती है | हमारे देश का अधिकांश बुद्धिजीवी वर्ग वामपंथी विचारों का लबादा ओढ़े आत्ममुग्धता से लबरेज रहा है | इन बुद्धिजीवियों को जिनमें से अधिकांश ने आपातकाल का दंश झेला है,को दिन रात यह चिंता सताए रहती है,इस देश का लोकतंत्र खतरे में है,देश और संविधान खतरे में है,यह अलग बात है कि इंदिरा गाँधी के आपातकालीन काल में जब कुख्यात 42वां संविधान संशोधन हुआ था,इन लिजलिजे बुद्धिजीवियों ने एक आध अपवाद को छोड़कर शुतुरमुर्ग की तरह ख़ामोशी का आवरण ओढ़ लिया था | 
                                                                  इन सबमें सबसे विचित्र बात ये है कि जब यह तबका इस सरकार के खिलाफ विषवमन करते हुए एक सरकार विरोधी माहौल बनाने की कोशिश कर रहा होता है,और मोदी सरकार को कोसते हुए,सरकार की नीतियों पर प्रहार करते हुए,बेलगाम,बदजुबानी करता है तो यह कहकर हंसी का पात्र ही बनता है कि इस सरकार में बोलने की आजादी छीन ली गई है | 

इंदिरा गाँधी के आपातकाल के बारे में बहुत कुछ लिखा,पढ़ा बोला और झेला जा चुका है | 

कहा जाता है कि उस वक्त गुलजार की फिल्म आंधी को सेंसर बोर्ड ने अनापत्ति प्रमाणपत्र ना देकर इसलिए रोक दिया था क्योंकि बकौल तत्कालीन सरकार इस फिल्म में इंदिरा गाँधी का नकारात्मक चरित्र-चित्रण किया गया था बाद में काफी काट-छांट के बाद इस फिल्म को रिलीज़ होने दिया गया | अब जरा वर्तमान हालात पर गौर फरमाइए,मोदी जी पर बनी बायोपिक को चुनाव आयोग ने चुनाव समाप्त होने तक रिलीज होने से रोक दिया,क्या ये आपातकाल की आंधी है ? लोकतान्त्रिक मूल्यों और संस्थाओं का सम्मान करते हुए आयोग या किसी अन्य संस्था के सरकार विरोधी निर्णय को शिरोधार्य करना यह दर्शाता है कि इस देश का लोकतंत्र पिछले पांच सालों और पुष्पित,पल्लवित,विकसित और परिपक्व हुआ है | 
                                                     दरअसल आपातकाल जैसी वीभत्स चीजों का दुष्प्रचार कर देश का वो राजनितिक,आत्ममुग्ध लिजलिजा बुद्धिजीवी वर्ग अपने बचे खुचे अस्तित्व को बचाने की कवायद में जुटा है जिसे 2014 में जनता ने ख़ारिज कर दिया | 

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