Tuesday 25 December 2018

असहिष्णुता के नए झंडेबरदार,नसीर साहब का दर्द

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अंग्रेजी में एक कहावत है, If You Are Intelligent Than You Should Definitely Be Rich.अगर इस कहावत को असहिष्णुता के नए झंडेबरदार नसीर साहब के नजरिये से बॉलीवुड के सन्दर्भ में देखें तो चीजें थोड़ी स्पष्ट हो जाएंगी | बॉलीवुड में कम फिल्में करने ( या मिलने ) के बावजूद जिन कुछेक  कलाकारों ने अपने उम्दा अभिनय से कला प्रेमियों के मानस पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है उसमें निश्चित रूप से नसीर साहेब का नाम लिया जा सकता है | स्पर्श के अंधे शिक्षक अनिरुद्ध परमार,सरफ़रोश के गुलफाम हसन,इश्किया के खालू चाचा,ए वेडनसडे के कॉमन मेन हर किरदार में नासिर साहेब ने अदाकारी की अद्भुत छटा बिखेरकर सिनेमा प्रेमियों के दिलों में अपनी जगह बनाई | लेकिन शानदार अदाकारी के बावजूद कभी भी बॉलीवुड ने उन्हें उनकी प्रतिभा के हिसाब से हाथों हाथ नहीं लिया | इस बात की खलिश नसीर साहेब को हमेशा रही है और गाहे बगाहे वो इसका इजहार भी करते रहे |
                           2016 के जागरण फिल्म महोत्सव में मुझे एक प्रोफेसर साहिबा के माध्यम से नसीर साहब से एक सवाल पूछने का मौका मिला था |मैंने उनसे पूछा था कि आजकल सिनेमा की लोकप्रियता का मानदंड 100 करोड़ी क्लब बन गए हैं ऐसे में आप जैसे कलाकार जो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से Bollywood में आए हैं उसे कैसे देखते हैं,और क्या आप पर भी इस करोड़ी क्लब का दबाव है ? मुझे लगा मेरे इस सवाल ने जैसे नसीर साहब की दुखती रग पर हाथ रख दिया,उनका जवाब था कि ये क्लब और एक्टिंग स्कूल सब भांड हैं,जो दो लाइन का डायलॉग नहीं बोल सकते वो सुपरस्टार कहला रहे | उनका इशारा साफ़ था | उनके इसी कोफ़्त को थोड़ा विस्तार से समझिये |
बॉलीवुड का दस्तूर है कि हीरो गोरा और माचोमैन जैसा दिखना चाहिए,मायानगरी में उसका गॉड फादर होना चाहिए,उसे एक्टिंग आती हो या ना हो यह बात ज्यादा मायने नहीं रखती | अभिषेक बच्चन से बेहतर इस बात को कौन समझ सकता है | इस बीच नासिर साहब ने हॉलीवुड की भी कुछ फिल्में की ( शौक नहीं मजबूरी वश ) |
                                                      वैसे इसे NSD ( राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ) का दुर्भाग्य कहें या बॉलीवुड का अपना पारम्परिक दस्तूर कि यहाँ एक आध अपवादों को छोड़कर NSD से आए हर कलाकार को ताउम्र काम पाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है | परदे पर उम्दा अभिनय के बावजूद उन्हें वो इज़्ज़त और सम्मान नहीं मिलता जिसके वो हक़दार हैं | चाहे वो नसीरुद्दीन शाह हों,ओमपुरी,पंकज कपूर,पीयूष मिश्रा,आशुतोष राणा इन नामों की एक लम्बी फेहरिस्त है | 
                                               अपनी तमाम काबिलियत के बावजूद जब ना तो वो परदे पर दिख रहे ना मीडिया में तो हालिया चलन को अपनाते हुए उन्होंने भी असहिष्णुता का सहारा लिया,बस फिर क्या था सोशल मीडिया से लेकर पारम्परिक मीडिया तक हर जगह A Wednesday का Common Man अपने Uncommon बयान की वजह से छा गया | आज से कुछ साल पहले ओमपुरी साहब ने कहा था कि अगर मुझे कुछ दिन और काम ना मिला तो मुझे मजबुरन यहाँ से सन्यास लेना पड़ेगा | खैर उस वक्त देश में लोग असहिष्णुता शब्द से परिचित नहीं थी वरना हो सकता है वो भी इस दर्द और ख़लिस का ठीकरा असहिष्णुता पर फोड़कर अपनी भड़ास निकालते |
      जैसे कोई हीरोइन या मॉडल जब कुछ दिनों तक मीडिया की नजरों से ओझल हो जाती हैं तो फिर काम और नाम पाने के लिए पहले फोटो शूट करवाती हैं | नसीर साहब की उम्र अब ऐसा कुछ करने की रही नहीं तो उन्होंने असहिष्णुता का सहारा लिया | बुलंदशहर की घटना समूचे देश का आईना नहीं है नसीर साहेब | अच्छा होता आप असहिष्णुता का आरोप उस बॉलीवुड पर लगाते जिसमें आप जैसे अभिनेता से लगातार दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है,कम से कम देश को ये तो मालुम पड़ता कि मायानगरी की माया का मायाजाल क्या है |   

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