Thursday 7 July 2016

रवीश के अकबर को पत्र का मेरा जवाब

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अप्रिय
         रवीश कुमार अभी थोड़ी देर पहले ही मुझे उसी सोशल मीडिया पर जिसकी वजह से आप जैसे पत्रकार खुद को देश का जनमत समझने लगे एम जे अकबर को संबोधित आपका पत्र मिला | हालाँकि वह मेरे नाम नहीं था और मुझे यह भी नहीं पता कि अकबर साहब आपके द्वारा हेट से सरोबार लव लेटर का जवाब कब देंगे,लेकिन उस पत्र में ऐसी बहुत सी बातें थी जिसका जवाब देना मुझ जैसे पत्रकारिता के एक भूतपूर्व विद्यार्थी और सुधि पाठक होने के नाते जरुरी लगा | सबसे पहले मैं आपको बता दूँ कि मैं उनलोगों में से हूँ जो आपको बिना किसी राग.द्वेष के दलाल कहते हैं |  मैं यह नहीं कहूंगा की आपकी माँ मेरी माँ समान है (अगर आप सही मायने में माँ का अर्थ केवल भारत माँ समझते हैं ) फिर भी जानकारी के लिए बता दूँ कि मैंने कभी आपकी माँ के लिए सोशल मीडिया पर शब्दों से मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया | आप चाहें तो गूगल कर सकते हैं |
                 रवीश मुझे ना तो यह जानने में दिलचस्पी है और शायद मैं कभी यह जान भी नहीं पाऊंगा कि आप पत्रकार के वेष में रहते हुए एक विशेष विचारधारा के प्रवक्ता बनने के बाद क्या सोचते हैं ? जब आप प्राइम टाइम में या जहां कहीं भी आपको मौका और मंच मिलता है एक विचारधारा को तवज्जो देते हुए दूसरी विचारधारा का मान मर्दन करते हुए पत्रकारिता के मूल्यों को बेआबरू करते हैं तो कैसा लगता है ?
                                                  मैं इस अप्रत्यक्ष रूप से मुझ जैसों को संबोधित पत्र का जवाब तल्खी नहीं बल्कि बिलकुल शांत भाव से लिख रहा हूँ | आपको यह शिकायत है कि पिछले तीन सालों से सोशल मीडिया पर आपसे बहुत अनसोशल व्यवहार किया जा रहा है | गाली गलौज,विशेषणों से संबोधन पर क्या ये अचानक शुरू हुआ कि आपके एकपक्षीय विचारों को सोशल मीडिया पर बाढ़ के पानी की तरह डुबो देने की कोशिश की जाने लगी | ट्विटर पर आपको एक खास विचारधारा के वैचारिक चिड़ियों ने अपने शब्द भेदी बाणों से लहूलुहान कर मैदान छोड़ने पर मजबूर कर दिया | अचानक तो बच्चा भी पैदा नहीं होता रवीश उसमें भी 9 महीने लग जाते हैं | यानि यह एक सतत प्रक्रिया जो आपके द्वारा क्रियान्वयित की जा रही थी की तार्किक परिणति है |
                                                                                                           मैंने आपकी बहुत सारी रिपोर्टिंग देखी है और जब मैं जामिया मैं पत्रकारिता का कोर्स कर रहा था तो आपकी अच्छी और निष्पक्ष रिपोर्टिंग के बारे में लोगों से चर्चा भी करता था पर विडंबना देखिये कि जैसे-जैसे आपका पत्रकारिता के सच्चे मूल्यों से मोहभंग या भटकाव शुरू हुआ वैसे ही मुझे भी पत्रकार से दलाल में रूपांतरित होते रवीश कुमार से विरक्ति होनी शुरू हो गई | आप कहते हैं आप दलाल नहीं हैं | दलाली क्या सिर्फ कोठे पर ही होती है ? वो दलाली तो एक के शारीरिक भूख और दूसरे की आर्थिक मज़बूरी की आवश्यक बुराई या तार्किक परिणति है | वो सामान्य लोक हैं किसी स्तंभ का मजबूत आधार नहीं | दलाली उनकी मज़बूरी है |
                                                        क्या आपकी दलाली या वैचारिक खुन्नस का तिलिस्म तब टूट जाता गर मोदी जी अर्नब के बदले आपको साक्षात्कार देते ? आपको खुद के बारे में इतना भ्रम क्यों और कैसे हो गया कि सरकार आपसे चिढ़ने लगी है | सरकार तो आपके माई बाप प्रणव राय से नहीं चिढ़ रही, जिनसे अगर सरकार चिढ़ना चाहे तो रातों रात एन डी टी वी जिसे लोग कुछ सही मायनों में रंडी टी वी भी कहते हैं का बोरिया बिस्तर बंधवा देगी | बिल्कुल मंगल के खून के लेमन सोडे की तरह ठर्र से फाइल खुलेगी और फर्र से पी जाएगी | रवीश इस सरकार के पास करने को बहुत कुछ है | वैसे इतना तो आप भी मानेंगे ना कि मोदी सरकार ने लुटियंस से सत्ता की दलाली करने वालों को उखाड़ फेंका है | चूँकि आप लुटियंस जोन से बाहर हैं इसलिए बड़े आराम से दलाली कर पा रहे हैं | 
                                                  आप खुद दिल पे हाथ रखकर बताओ ना आपकी रिपोर्टिंग से क्या वैचारिक बदबू नहीं आती | ऐसा लगता है मानो भाजपा सरकार ने रंडी टी वी से उधार लेकर अपना चुनाव प्रचार किया हो और जीतने के बाद पैसा देने से मुकर गई हो | घृणा,विद्वेष,झूठ,फरेब जितनी चीजें डालनी हो वो इस सरकार के खिलाफ खबर बनाते और पढ़ते समय डाल देते हैं | मुझे लगता है जिस तरह उल्लू दिन में नहीं देख पाता उसी तरह आप भी कांग्रेस और विपक्ष में कोई बुराई नहीं देख पाते | लेकिन उल्लू की देखने की समस्या तो केवल दिन में ना देख पाने की है आप तो चारो पहर सूरदास बने रहते हैं | चलो कुछ देर के लिए यह मान भी लिया की कुछ लोग ऐसे हैं जिनकी वजह से आपको ट्विटर छोड़ना पड़ा लेकिन क्या वो बेवजह ऐसे हैं | आपके पास तो दलाली और विद्वेष फ़ैलाने के लिए रंडी टीवी है उनके पास क्या है ? वो बेचारे तो तो केवल न्यूटन के तीसरे नियम का पालन करते हैं | 
                                    रवीश निश्चित रूप कुछ पत्रकार और चैनल सरकार के घोषित प्रवक्ता हैं और वो अपनी वैचारिक बिरादरी में पूजे भी जाते हैं पर उनका एजेंडा तो बिलकुल स्पष्ट दिखता है वो छधम पत्रकारिता नहीं करते | रोहित सदाना,रजत शर्मा या सुधीर चौधरी रोज यह राग नहीं अलापते की सोशल मीडिया पर मुझे गलियां मिल रही हैं | क्या आपको लगता है कि उन्हें दलाल या उनकी माताओं को विशेषणों से नहीं नवाजा जाता होगा | प्यार,नफरत,दलाली जो करना है खुल कर करो ना भाई | ये कैसी शादी निभा रहे कि एक तरफ बीबी करवाचौथ रख रही और दूसरी तरफ आप कहीं और पींगें लड़ा रहे | इससे तो अच्छा है संबंध विच्छेद कर दो | अगर रवीश कुमार एक स्वघोषित दलाल बरखा दत्त को महिला सशक्तिकरण का प्रतीक मानता है तो उसी रवीश को स्मृति ईरानी में यह प्रतीक क्यों नहीं दिखती है ? 
                                            जनरल वी के सिंह ने प्रेस्टिट्यूड’ विशेषण का इस्तेमाल सारे पत्रकारों के लिए नहीं आप जैसे कुछ चुनिंदा पत्रकारों के लिए ही किया था | मुझे ताज्जुब इस बात का है कि आपलोगों ने इस विशेषण को दिल से लगा लिया अगर प्रेस्टिट्यूड’ नहीं हो तो दिल में इतनी कसक नहीं उठनी चाहिए थी ना | या इसलिए उठी क्योंकि भाजपा के किसी मंत्री ने ऐसा कह दिया | क्या मायावती,अरविन्द केजरीवाल,असदुद्दीन ओवैसी,लालू यादव जैसे महान धर्मनिरपेक्षता वादी इस विशेषण का प्रयोग करते तो भी इतना ही बुरा लगता ? बिलकुल नहीं,क्योंकि इनके कर्म,इनकी राजनीती इनकी वाणी का ओज तो आप जैसों के लिए प्रेरणा का श्रोत है | समुद्र मंथन से निकले अमृत तो यही हैं बाकी सारे भाजपाई और संघ वाले तो विष व्याप्त हैं | रवीश,मैं ये तो नहीं कहूंगा कि आज के युवाओं के लिए आजकल रवीश कुमार बनना आसान है या एम जे अकबर लेकिन इतना जरूर है कि अकबर ने अकबर बनने के लिए कभी वैचारिक विष वमन नहीं किया | 
          मुझे लगता है आप खुद को सोशल मीडिया पीड़ित और नैतिकता और पत्रकारिता के ऊँचे मूल्यों का रहनुमा दिखाकर उस मुस्लिम पत्रकार एम जे अकबर पर निशाना साध रहे जो अब भाजपा सरकार में मंत्री हैं | यह बात आप काफी दिनों तक पचा नहीं पाएंगे कि एक मुस्लिम पत्रकार भाजपा में जाकर मंत्री कैसे बन गया ? मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि गर अकबर साहब कांग्रेस सरकार में मंत्री बनते तो रवीश कुमार वैसा ही मौन धारण कर लेता जैसा सम्पूर्ण प्रधानमंत्रित्व काल में मनमोहन सिंह ने किया था |
  पुनश्च
आप पत्र लिखने में अच्छी वैचारिक स्याही खर्च करते हैं | पर यह स्याही तब क्यों सूख जाती है जब आशुतोष भरी जवानी में पत्रकारिता को त्यागकर आप से ब्याह रचा लेते हैं | तब आपकी कलम को क्या हो जाता है जब बरखा 2जी में संलिप्त पाई जाती हैं | मैं जानता हूँ आपकी स्याही तब भी सूख जाएगी जब राजदीप सरदेसाई आप का दामन थामेंगे | आप लिखते रहो,विष उगलते रहो अभी तो सिर्फ ट्विटर से विलुप्त हुए हो अगर यही हाल रहा तो किसी दिन पत्रकारिता के इतिहास के कूड़ेदान में भी जगह नहीं मिलेगी |
             

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