Sunday 3 July 2016

हिंदी बोलने पर माउंटबेटन इन्हें काले पानी की सजा दे देंगे

0 comments

गत शुक्रवार को दिल्ली का मौसम अरविन्द केजरीवाल की राजनीति की तरह अपना मिजाज बदल रहा था |सुबह धूप,फिर थोड़ी देर के बाद अचानक बादल,फिर हल्की बूंदा-बूंदी |खैर मैं इस मौसम के लिए बिना किसी को जिम्मेदार ठहराए घर पर अपने काम में व्यस्त था | तभी मेरी एक मित्र ने फोन किया और कहा कि जागरण फिल्म फेस्टिवल जाओगे ? मैंने कहा यार हमारे यहाँ फिल्म फेस्टिवल और पुरस्कारों में ऐसा क्या होता है जो मैं अपना समय बर्बाद करूँ | उसने कहा इस पर बाद में बहस कर लेना,वहां नसीरुद्दीन साहब आ रहे हैं हो सकता है वो एक पत्रिका के लिए साक्षात्कार दे दें तुम चूँकि व्यवस्था और व्यक्ति से बहुत सवाल पूछते हो सो साथ चलोगे तो अच्छा रहेगा | मैंने कहा चलो चलते हैं | फिर हम चल पड़े 7 वें जागरण फिल्म महोत्सव की ओर |
                                                          चूँकि मैं देश के सबसे बड़े हिंदी समाचार पत्र के समारोह में जा रहा था तो रास्ते भर मेरे मन में हिंदी के प्रति बहुत सारे सवाल उमड़ रहे थे,कि हम हिंदी भाषी लोग अक्सर अंग्रेजी और अंग्रेजों को कोसते हैं | अंग्रेजी हमसे क्यों आगे है ? विदेशी भाषा को हम क्यों इतनी तवज्जो देते हैं,क्यों करीब 80 करोड़ हिंदी बोलने,समझने और खाने वाले लोगों के सामने अक्सर अंग्रेजी परोसी जाती है | क्या अंग्रेजी के बिना देश का भविष्य नहीं है | आखिर कौन जिम्मेदार है इसके लिए | वगैरह-वगैरह
                                                                      सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम पहुंचकर पता चला कि नसीरुद्दीन साहब जो कि इस महोत्सव के मुख्य अतिथि थे वो हॉल नं 3 में हैं हम वहां पहुंचे तो देखा खचाखच भरे हाल में नसीर साहेब एक स्टेज पर (जहां हिंदी में बड़े-बड़े अक्षरों में सातवां जागरण फिल्म महोत्सव लिखा था) एक शख्स (मुझे उस वक्त उसका नाम नहीं पता था ) द्वारा अंग्रेजी में पूछे जा रहे सवालों का अंग्रेजी में ही जवाब दे रहे थे | यह सिलसिला करीब एक घंटे तक चला | हिंदी समाचार पत्र के समारोह के इस अंग्रेजी कार्यक्रम के बाद अब बारी थी इस महोत्सव में केतन मेहता द्वारा निर्देशित फिल्म टोबा टेक सिंह के प्रदर्शन की | उस भरे हुए हाल में भी उद्घोषक,जागरण समूह के प्रबंध निदेशक संजय गुप्ता,सुधीर मिश्रा,केतन मेहता सबने अंग्रेजी में ही अपनी-अपनी बात रखी | और सबसे बड़ी बात इन महानुभावों में से किसी भी व्यक्ति की जुबां से गलती से भी हिंदी का एक शब्द ना निकला | ऐसा लग रहा था मानो हिंदी बोलने पर लार्ड माउंटबेटन इन्हें काले पानी की सजा दे देंगे | 
     मैकाले के मानस पुत्र क्यों दिनों दिन दिनकर की विरासत को लील रहे हैं | जब हिंदी बोलने,समझने और उसी की कमाई खाकर लोग अंग्रेजी की उलटी करेंगे तो बेचारी हिंदी कहाँ से सशक्त होगी | हिंदी के सबसे बड़े दुश्मन तो हिंदी वाले ही हैं | घर लौटते हुए मुझे दुष्यंत कुमार की वो लाइन याद आ रही थीं "कौन कहता है कि आसमां में सुराख़ नहीं होता एक पत्थर को तबियत से उछालो तो यारो |
     लगता है आसमां में सुराख़ करने के लिए फिर दुष्यंत कुमार को पैदा होना होगा | 


               
                                                                           

No comments:

Post a Comment