आप राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर जितनी बार और समय के जिस भी पहर में जाएँगे एक बार निश्चित रूप से देश की बढ़ती आबादी को गरियाएंगे | हर वक्त भीड़ की अफरा तफरी,ऐसा लगता है मानो लोगों को जंग के मैदान में जाने की जल्दबाजी हो | खैर मेट्रो में रोजाना सफर करते हुए अब ये सारी चीजें मेरे लिए न तो नई है और न ही परेशान करती है |
आज शाम कौशांबी से राजीव चौक उतरकर नीचे जहांगीर पुरी की तरफ जाने वाली वाली मेट्रो का इंतजार कर रहा था | मेट्रो आई लेकिन वो विश्वविद्यालय तक ही जा रही थी | आश्चर्यजनक रूप से इसमें भीड़ थोड़ी कम थी,सो मैंने सोचा चलो इसी में निकल लेते हैं,आगे बदल लेंगे | संजोगवस सीट भी मिल गई | मैं अपने बैग से रोजाना की तरह न्यूज़ पेपर निकालने ही वाला था कि मेरी नजर सामने वाली सीट पर पड़ी | एक 9-10 साल की बच्ची बैठी थी | उसके बाल बिखरे-बिखरे से थे,तुड़े-मुड़े कपड़े,ठंड में सिकुड़ी हुई लेकिन चेहरे पर शांत भाव और हंसमुख सी दिख रही थी |
मेट्रो जैसे ही नई दिल्ली से खुली वो दोनों हाथों से अपने हवाई चप्पल जो बिल्कुल घिसा सा किसी तरह उसके पैरों में पड़ा कराह रहा था उसे खोलने की कोशिश कर रही थी | शायद उसे पैर में चोट लगी थी हल्का खून भी रिस रहा था | मैं एक टक उस बच्ची को देख रहा था | डिजिटल इंडिया,सहिष्णुता असहिष्णुता के शोर और जन धन जैसी योजनाओं से अंजान उस मासूम का सारा ध्यान सिर्फ इस बात पर था कि चप्पल खोलते समय कहीं टूट न जाए,बहुत आहिस्ता-आहिस्ता वो कोशिश कर रही थी लेकिन किस्मत भी तो साली गरीबों को दगा दे जाती है | और वही हुआ जिसका उसे और मुझे भी डर था उस बेचारी की चप्पल टूट गई | उस वक्त उसके लिए इससे बड़ी मुसीबत और कुछ नहीं हो सकती थी | बिल्कुल रुआंसा हो गया था उसका चेहरा | वो इधर-उधर देखने लगी,उसकी आँखों की बेबसी,छटपटाहट सब कुछ बयां कर रही थी | मैं अपनी सीट से उठा और उसके पास जाकर उससे पूछा तुम्हें कहाँ जाना है | तब तक उसके दो सीट बगल वाली लड़की ने कहा ये प्रताप नगर जाएगी इसके साथ शायद इसके पापा हैं उसने ऊँगली से सामने की तरफ इशारा किया मैंने देखा वो थोड़ा विक्षिप्त सा अधेड़ उम्र का शख्स था | मैंने फिर बच्ची की तरफ मुखातिब होते हुए पूछा कुछ खाओगी ? वो मेरा सवाल सुनकर अपने चप्पल की ओर देखने लगी तभी मेट्रो में रोजाना की तरह उद्घोषणा हुई दिल्ली मेट्रो में खानपान,मद्धपान और ध्रूमपान निषेध है | उफ्फ्फ क्या विडंबना है यार | मैंने अपना पर्स निकाला और उस बच्ची के हाथ में 100 का नोट पकड़ाते हुए कहा लो कुछ खा लेना | उसने मेरी तरफ देखते हुए सिर्फ Thank You बोला | तब तक कश्मीरी गेट आ गया और वो बच्ची अपने पापा का हाथ पकड़ते हुए बाहर निकल गई | और मैं इस सोच के साथ सफर में आगे बढ़ने लगा कि वो कुछ खाएगी या अपने लिए चप्पल खरीदेगी |
आज शाम कौशांबी से राजीव चौक उतरकर नीचे जहांगीर पुरी की तरफ जाने वाली वाली मेट्रो का इंतजार कर रहा था | मेट्रो आई लेकिन वो विश्वविद्यालय तक ही जा रही थी | आश्चर्यजनक रूप से इसमें भीड़ थोड़ी कम थी,सो मैंने सोचा चलो इसी में निकल लेते हैं,आगे बदल लेंगे | संजोगवस सीट भी मिल गई | मैं अपने बैग से रोजाना की तरह न्यूज़ पेपर निकालने ही वाला था कि मेरी नजर सामने वाली सीट पर पड़ी | एक 9-10 साल की बच्ची बैठी थी | उसके बाल बिखरे-बिखरे से थे,तुड़े-मुड़े कपड़े,ठंड में सिकुड़ी हुई लेकिन चेहरे पर शांत भाव और हंसमुख सी दिख रही थी |
मेट्रो जैसे ही नई दिल्ली से खुली वो दोनों हाथों से अपने हवाई चप्पल जो बिल्कुल घिसा सा किसी तरह उसके पैरों में पड़ा कराह रहा था उसे खोलने की कोशिश कर रही थी | शायद उसे पैर में चोट लगी थी हल्का खून भी रिस रहा था | मैं एक टक उस बच्ची को देख रहा था | डिजिटल इंडिया,सहिष्णुता असहिष्णुता के शोर और जन धन जैसी योजनाओं से अंजान उस मासूम का सारा ध्यान सिर्फ इस बात पर था कि चप्पल खोलते समय कहीं टूट न जाए,बहुत आहिस्ता-आहिस्ता वो कोशिश कर रही थी लेकिन किस्मत भी तो साली गरीबों को दगा दे जाती है | और वही हुआ जिसका उसे और मुझे भी डर था उस बेचारी की चप्पल टूट गई | उस वक्त उसके लिए इससे बड़ी मुसीबत और कुछ नहीं हो सकती थी | बिल्कुल रुआंसा हो गया था उसका चेहरा | वो इधर-उधर देखने लगी,उसकी आँखों की बेबसी,छटपटाहट सब कुछ बयां कर रही थी | मैं अपनी सीट से उठा और उसके पास जाकर उससे पूछा तुम्हें कहाँ जाना है | तब तक उसके दो सीट बगल वाली लड़की ने कहा ये प्रताप नगर जाएगी इसके साथ शायद इसके पापा हैं उसने ऊँगली से सामने की तरफ इशारा किया मैंने देखा वो थोड़ा विक्षिप्त सा अधेड़ उम्र का शख्स था | मैंने फिर बच्ची की तरफ मुखातिब होते हुए पूछा कुछ खाओगी ? वो मेरा सवाल सुनकर अपने चप्पल की ओर देखने लगी तभी मेट्रो में रोजाना की तरह उद्घोषणा हुई दिल्ली मेट्रो में खानपान,मद्धपान और ध्रूमपान निषेध है | उफ्फ्फ क्या विडंबना है यार | मैंने अपना पर्स निकाला और उस बच्ची के हाथ में 100 का नोट पकड़ाते हुए कहा लो कुछ खा लेना | उसने मेरी तरफ देखते हुए सिर्फ Thank You बोला | तब तक कश्मीरी गेट आ गया और वो बच्ची अपने पापा का हाथ पकड़ते हुए बाहर निकल गई | और मैं इस सोच के साथ सफर में आगे बढ़ने लगा कि वो कुछ खाएगी या अपने लिए चप्पल खरीदेगी |
Good dear!
ReplyDeleteक्या बात है | बहुत सुंदर रचनात्मक अप्भिव्यक्ति
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