Saturday 24 October 2015

तुम साहित्यकार नहीं एक विचारधारा के हो चाटुकार

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क्यों तुमने लौटाने शुरू किए तब पुरस्कार
जब तुम्हारी स्याही को नहीं मिलने लगा
सत्ता का आधार |
लेखकों पर तो हमले हुए हैं अनेकों बार
पर अचानक पुरस्कार वापसी को
क्यों बनाया तुमने अपने विरोध का आधार ?
दादरी पर तुमने घड़ियाली आंसू बहाए
पर तस्लीमा और रुश्दी पर
अपनी जुबान तक न खोल पाए,
ये भी तो तुम्हारी ही बिरादरी के थे मेरे यार |
तुमने इतिहास को जी भर तोड़ा मरोड़ा
अशोक को सांप्रदायिक और औरंगज़ेब को धर्मनिरपेक्षता से जोड़ा
तुम्हें जो अच्छा लगा वो धर्मनिरपेक्ष हो गया
जो बुरा लगा वो धर्मांध |
तुमने तो कलाम को भी सच्चा मुसलमान नहीं माना
क्योंकि उन्होंने गीता को बनाया था अपने जीवन का वैचारिक आधार |
तुम अँधेरे में मंदिर जाते हो और उजियारे में भगवान को गरियाते हो,
अच्छा किया जो तुमने लौटा दिए पुरस्कार
दरअसल तुम साहित्यकार नहीं एक विचारधारा के हो चाटुकार |

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