Sunday 19 July 2015

तुम्हारे चेहरे पर पड़ी पसीने की बूंदें

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वक्त बेवक्त तुम्हारे चेहरे पर पड़ी मोतियों सी पसीने की बूंदें
जला रही थी मुझे,
वो मेरी मौजूदगी में भी तुम्हारा स्पर्श करता
बार-बार तुम्हारे चाँद से चेहरे को 
कम्बखत अपनी बूंदों से सरोबार करता,
कभी तुम्हारी आँखों में आता,
कभी तुम्हारे गर्म होठों को स्पर्श करता
और अपनी मनमानी करते हुए
चुपचाप तुम्हारी अधरों में समा जाता |
बेचैन हो जाता था,
मैं इन पसीने की बूंदों की किस्मत देखकर,
ये जब चाहे तुम्हारा स्पर्श कर सकते थे
एक दिन मेरे सब्र का बाँध टुटा
और मैं पसीने की बूंदों से पूछ बैठा
क्यूँ परेशान करता है तू मेरी बेचैन हुस्न को
उसने मुझे मुस्कुरा कर कहा
क्या मोहब्बत करना सिर्फ तुम्हें ही आता है ? 
उसने शब्दों का कारवां आगे बढ़ाते हुए कहा
अरे पगले हमारी मोहब्बत तो निः स्वार्थ है
मैं तुम्हारी माशुका के चेहरे पर आता हूँ
उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगाता हूँ
और बिना किसी कामना वासना के काल कलवित हो जाता हूँ | 
उसके शब्दों ने मुझे थोड़ा लज्जित किया,
लेकिन निः स्वार्थ प्रेम की उसकी विचारधारा ने
मुझे मोहब्बत का बड़ा फलसफा दिया था | 
अब तुम्हारे चेहरे पर पड़ी पसीने की बूंदें
मेरे दिल को बड़ा सुकून दे रही थी | 

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