पहले हम झुंड में दिखा करते थे अब हमारी संख्या घटती जा रही है | जंगल,गांव,क़स्बा,शहर हर जगह ये हमें आच्छादित करने पर तुले हैं | Confuse हूँ...
पहले हम झुंड में दिखा करते थे अब हमारी संख्या घटती जा रही है | जंगल,गांव,क़स्बा,शहर हर जगह ये हमें आच्छादित करने पर तुले हैं | Confuse हूँ...
शिव की जटा से निकली,भागीरथी के प्रयासों से इस धरती पर आई, तुम मनुष्यों के पाप धोकर पतितपावनी कहलाई मैं अभागी गंगा बोल रही हूँ | ढूंढ़ती ...
सोचता हूँ कभी-कभी, की क्या बदला है मेरी ज़िंदगी में तुम्हारी दस्तक से | कोशिश करता हूँ मूल्यांकन करूँ, पर संबंधों का गणित मानसिक रूप से...
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