Saturday 14 February 2015

Valentine Day और प्रेम के बदलते मूल्य

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भूमिका-आज जब दुनिया भर में संत वैलेंटाइन का जन्म दिवस बड़े धूम धाम से मनाया जा रहा है तो ऐसे में प्रेम के इस पावन अवसर पर इसके बदलते मूल्यों की पड़ताल करना लाजमी जान पड़ता है | प्रेम ना तो दिखावे की वस्तु है,और ना ही यह आपके छिपाने से छिप सकता है | पर क्या वास्तव में ऐसा हैवर्तमान परिस्थितियों में तो ऐसा प्रतीत नहीं होता | हम जिस दौर के प्रेम को देख और जी रहे हैं उस दौर के प्रेम और इतिहास के पन्नों में सिमटी प्रेम कथाओं में जमीन आसमान का अंतर जान पड़ता है |
प्रेम के ऐतिहासिक आख्यान-
पहले प्रेम अपने सर्वोत्तम रूप में मौजूद था,जिसमें समर्पण,त्याग,नैतिकता,विश्वास जैसे तत्वों का समावेश था |उस वक्त प्रेम सुलभ नहीं दुर्लभ था,सहर्ष नहीं होता था लेकिन एक बार हो गया तो टूटन की गुंजाइश ना के बराबर थी ।आज के अधिकांश संबंध जुड़ने के दिन से ही थोड़े-थोड़े टूटने शुरू हो जाते हैं | प्रेमिका को पाने के लिए प्रेमी की दीवानगी या इसके उलट कई प्रतिमान मौजूद हैं जो आज कल के प्रेम करने वालों को बहुत रोमांचित करते हैं | ये अलग बात है कि हम उन प्रतिमानों को आत्मसात नहीं करते | यहाँ सवाल यह भी उठता है कि आज हम किस प्रेम को आदर्श के रूप में स्वीकार करें ? कृष्ण के प्रेम को,ना ना उसके प्रेम में गंभीरता नहीं थी | पृथ्वीराज चौहान के प्रेम को,ना वो भी नहीं क्योंकि संयोगिता के चक्कर में उसने अपना राज मोहम्मद गोरी के हाथों गँवा दिया,और मुझे लगता है कि आज की युवा पीढ़ी पृथ्वीराज जैसी गलती नहीं कर सकती | फिर अकबर के प्रेम को,लेकिन अकबर ने किससे प्रेम किया थाजोधा से,अरे नहीं भाई वो प्रेम नहीं अकबर की रणनीतिक मज़बूरी थी |शाहजहाँ का प्रेम ?नहीं वो प्रेम नहीं,वरन प्रेम का विलासितापूर्ण,निरंकुश और संवेदनहीन प्रदर्शन था क्योंकि जिस समय वह ताजमहल बनवा रहा था उस वक्त मुग़ल साम्राज्य में भीषण अकाल पड़ा था | यहाँ मैं सिर्फ पुरुषों के प्रेम की उपमाएं ही दे रहा हूँ कृपया महिलाएं इसे गलत अर्थ में ना लें | अगर सच कहूँ तो प्रेम का कोई रोल मॉडल या Ideal Couple नहीं हो सकता |ऐसा करना प्रेम जैसे खुले आसमान को बेतुकी कोशिशों से बांधने के समान होगा | 
प्रेम और क्रिकेट- अगर हम क्रिकेट से प्रेम की तुलना करें तो प्रेम का स्वरुप पहले टेस्ट क्रिकेट की तरह होता था,कोई जल्दीबाजी नहीं आराम से अपनी-अपनी पारियां खेलिये |परंतु आजकल के प्रेम ने तो अब  20-20 को भी मात दे दी है | दरअसल पहले के प्रेम में Competition  नहीं था | बल्लेबाज केवल बल्लेबाजी पर ध्यान केंद्रित करके टीम में अपनी जगह पक्की करता था|आजकल ऐसा नहीं है प्रतिस्पर्धा बहुत है आपको Allrounder की तरह Perform करना पड़ता है
अगर हम दूसरे शब्दों में कहें तो पहले का प्रेम,प्रेमचंद के उपन्यास की तरह था जिसमें  आप तल्लीन होकर पात्र में डूब जाते थे जितनी गहराई में उतरो उतना ही आनंद |अब का प्रेम,चेतन भगत के नावेल की तरह हो गया है पढ़ते समय Dont be emotional पढ़ो और किताब को भूल जाओ |
वैसे आजकल प्रेम करने के लिए भावनाओं की नहीं प्रदर्शन की जरुरत होती है,पैसा,गाड़ी,देह सब कुछ प्रदर्शित कीजिये तभी आनंदातिरेक में जाएंगेपायल की झंकार नहीं अब WhatsApp के Tune पर प्रेम का मधुर संगीत सुनाई देता है |
इतिश्री- प्रेम अगर प्रतीकों का मोहताज हो जाए तो समझिये प्रेम के मूल्यों में क्षरण हो रहा है | जितने प्रेम संबंध बन रहे हैं,उसी गति से प्रेम संबंधों में विच्छेद भी हो रहा है | जानू,सोना,बाबू,स्वीट हार्ट अनेकों संबोधनों ने जन्म लिया लेकिन फिर भी हर्ट होने और करने के आंकड़ों में रोजाना वृद्धि हो रही | जिस तरह महानता के कुछ शाश्वत प्रतिमान होते हैं उसी तरह प्रेम भी कुछ मूल्यों पर सदियों टिका रहा है | परंतु आजकल प्रेम के प्रदर्शन को देख कर लगता है कि इसके मूल्य भी दरक रहे हैं | कुछ है जो छूटता जा रहा है | जरुरी नहीं की हाथों में हाथ डाले कनॉट प्लेस के जोड़े का प्रेम उतना मजबूत हो जितना लक्ष्मण और उर्मिला की विरह का प्रेम था |आज के ज़माने का प्रेम सिर्फ धूल उडाता है स्तर नहीं उठाताअच्छा है Valentine Day मनाइये लेकिन सिर्फ इसी दिन के भरोसे प्रेम जैसे बड़े और मूल्यवान शब्द को मत छोड़िये | प्रेम कीजिये,पर उससे पहले,विश्वास,बलिदान और समर्पण के भावों को जागृत कीजिये 

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