Saturday 13 December 2014

कितने बदल गए हम

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कभी मारुती 800 हमारी
मुस्कान हुआ करती थी
अब तो ऑडी में भी लोग
परेशान से दिखते हैं,
जमाना क्यों इतना बदल गया
कि जाने पहचाने चेहरे भी
अंजान से  दिखते हैं |
काश ऐसा होता
कि हम अपने ग़मों को
OLX पे बेचकर
खुशियों को Flipcart से खरीद पाते
E.M.I चुकाने की Tension ना होती
तो हम भी खुलकर जिंदगी जी पाते |
महीने की 20 तारीख आते-आते
जब Salary ख़त्म होने को आती है,
तो ईमानदारी भले चुभती हो
पर बेईमानी में नींद कहाँ आती है ?
एक तरफ हम चाँद पर जा रहे
तो दूसरी तरफ बेटों की चाह में
बेटियों की भ्रूण हत्या करवा रहे |
नेताओं का तो काम ही है धर्म की आँच पर
सियासत की रोटी पकाना पर हम आम इंसान
क्यूँ मंदिर मस्जिद के नाम पर एक दूसरे का लहू बहा रहे ?
आज सैकड़ों चैनलों के बावजूद हमारा दिल नहीं बहलता,
सुबह नंगे पांव ओस की बूंदों पर अब कोई नहीं टहलता |
नर्सरी के दाखिले में तो अब अच्छे-अच्छों के पसीने निकल जाते हैं
अमीर तो मखमली बिस्तर पर भी नींद को तरस जाते हैं
और गरीब फुटपाथ पर सोते हुए रौंदे जाते हैं |
संस्कार और संस्कृति की बात करने वाले पिछड़े समझे जाते हैं
और मंदिर में लाखों का चढ़ावा चढ़ाने वाले
बूढ़े माँ बाप की जिम्मेदारी उठाने से कतराते हैं |

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