Friday 3 October 2014

हे राम तुम कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम थे

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हे राम तुम कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम थे जिसकी पत्नी को जीवन भर कष्ट झेलना पड़ा,जिसके बच्चों को संस्कार तो मिला पर पिता का वो सानिध्य और प्यार नहीं जिसके वो हक़दार थे | तुम्हारी मर्यादाओं के मोह ने उर्मिला का वैवाहिक सुख छीन लिया | राजा के कर्तव्य से विमुख होकर तुमने वनवास जाना बेहतर समझा ताकि तुम्हारी मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि पर कोई अंगुली ना उठाए | राजा दशरथ पुत्र वियोग में प्राण त्याग बैठे तब भी तुम्हारी मर्यादा की तंद्रा नहीं टूटी | एक धोबी के बातों की अफवाह पर तुमने जनक नंदनी के चरित्र पर संदेह किया,क्या यहाँ भी तुम मर्यादाओं से बंधे हुए थे | तुमने अग्नि परीक्षा के संदेह की ऐसी नींव डाली जो वर्तमान युग में भी पुरुषो की मानसिकता को जकड़े हुए है | हे राम तुम्हारी मर्यादा पालन की लालसा ने तुम्हें अमर बना कर उन्हें इतिहास में विलीन कर दिया जो तुम्हारी मर्यादा पालन के भुक्त भोगी थे | वर्तमान में क्यों कोई नारी तुम्हें अपने वर के रूप में कामना करे ? ना तुम अच्छे पति साबित हुए,ना अच्छे पुत्र,ना अच्छे पिता और ना ही अच्छे शासक फिर तुम मर्यादा पुरुषोत्तम कैसे राम ?अच्छा है राम तुम इस युग में नहीं हो,ये सोचकर ही मैं काँप उठता हूँ की अगर इस देश का भविष्य तुम्हारे जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम के हाथ में आ जाए,,,,,,,नहीं कदापि नहीं | रावण की मानसिकता ने तो केवल उसके स्वयं का विनाश किया पर तुम्हारी मानसिकता ,,,,,,,,,,,,,रहने दो राम तुम तो ज्ञानी हो | मुझे अपनी मर्यादाओं में ही रहने दो | 

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