Tuesday 16 September 2014

मोदी,मैजिक और मतदाता

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किसी भी लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्थावान देश के लिए चुनाव एक बड़ा पर्व माना जाता है | और बात जब भारत की हो तो चुनावों की महत्ता महापर्व सरीखा रूप धारण कर लेती है | आज ही उत्तर प्रदेश सहित कुछ राज्यों के उपचुनावी नतीजे आए हैं सो इसपर,चिंतन मनन (पक्ष,विपक्ष ) और लेखन तो लाजमी है | मई 20 14 में मोदी जब प्रचंड बहुमत से जीत कर आए थे तो भाजपा के साथ-साथ कुछ चुनावी विश्लेषकों ने यह मान लिया था अब अगले कुछ सालों तक भारतीय राजनीति का उदय और अस्त कमल और उसकी सहयोगियों के इर्द गिर्द ही घूमेगा | खैर इस भ्रम को पहला झटका पिछले महीने हुए बिहार विधानसभा के उपचुनावों में लगा और इस टूटन को आज के उपचुनावों के परिणाम ने और पुष्ट कर दिया | आखिर साढ़े तीन महीने में ऐसा क्या हो गया की वही मतदाता जिन्होंने कमल को माथे का ताज बनाया था आज उन्हें उसमें सिर्फ कांटे नजर आने लगे ?अच्छे दिन के वादे खोखले दिखने लगे | इसके पीछे दो तीन वजहें हैं | पहला कि हम आम भारतीय बहुत अधीर हैं,हमें सत्ता और व्यवस्था से बहुत उम्मीदें रहती हैं,हम वो मतदाता हैं जो एक कवि के शब्दों में मन हुआ तो राई को पहाड़ बना दिया और ना मन हुआ तो हिमालय की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखा |हम अभी  राई को आम भारतीय मानसिकता और मोदी के वादों को हिमालय मानकर इसका विश्लेषण करेंगे | मोदी ने जनता से भ्रस्टाचार हटाने,सबको रोजगार देने,स्मार्ट सिटी,वर्ल्ड क्लास स्टेशन,बुलेट ट्रेन,चौबीस घंटे बिजली  सरीखे हिमालयी वादे किए | जबकि जनता टेलीविज़न में दिखाए जाने वाले झंडू बाम वाले विज्ञापन की तरह तुरंत अपनी समस्या का निदान चाह रही थी | पिछले साढ़े तीन महीनों में महंगाई कमोबेश उसी तरह रही,बिजली आम लोगों को गर्मी में उसकी औकात बताती रही| इन समस्याओं से इतर इन चुनावों का दूसरा पहलु ये रहा की मोदी ने लोकसभा चुनावों के बाद अपनी प्राथमिकता बदल ली| उन्होंने चुनावों में रूचि तो ली लेकिन लोकसभा चुनावों की तरह नहीं वरना यह बात मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की मोदी अगर भूटान के बजाय एक दिन भागलपुर में रैली करते तो आज वहां हाथ नहीं कमल होता |यहाँ समस्या इस बात की है कि लोग अच्छी चीजों के लिए समय नहीं देना चाहते और घूम फिरकर फिर जाति और धर्म के दलदल में फंस जाते हैं वरना कोई वजह नहीं की उत्तर प्रदेश में इतने घटिया शासन के बावजूद सपा को 8 सीटें मिलती और मुलायम की तीसरी पीढ़ी मैनपुरी से चुनाव जीत जाती दरअसल परंपरागत भारतीय राजनीति में जो जाति और धर्म की लकीर खींची गई है उसे गौण करने के लिए मोदी को विकास की लम्बी लकीर खींचनी होगी | इस लकीर खींचने के काल में छोटे मोटे चुनाव आते रहेंगे |जनता को थोड़ा धैर्य रखना चाहिए मोदी भी बारह साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद प्रधानमंत्री बने,हम बारह महीने तो इंतजार कर ही सकते हैं | वैसे भी चुनाव की चिंता नेता करते हैं Statesman नहीं वो तो सिर्फ काम करते हैं | 

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