Sunday 15 June 2014

नौकरशाही या नौकरगिरी

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नौकरशाही या नौकरगिरी   

जब मैं  6ठी-7वी कक्षा में पढ़ता था उस वक़्त स्कूल जाते हुए अक्सर मुझे सड़क पर उन्मादी हाथी की तरह दौड़ती लाल बत्ती लगी एम्बेसडर बहुत रोमांचित करती थी | खैर उस समय मुझे सिर्फ इतना पता चला था कि ये लाल बत्ती वाले जिले के कर्ता-धर्ता यानि माई बाप होते हैं लेकिन मुझे यह बात काफी समय तक परेशान करती रही की इस लाल बत्ती वाले माई बाप को स्वामी की जगह नौकरशाह क्यों कहा जाता है?
                                                                            कालांतर में उम्र और विचारों की परिपक्वता के साथ मैं यह समझ पाया की नौकरशाह वह होता है जो सरकारी नीतियों,मंत्रियों के दावों,वादों के हवाई किले को जमीनी रूप देता है| वह अपने स्वतंत्र विचारों को कार्यान्वित ना कर संविधान के दायरे में रहकर कार्य करता है | पर अफ़सोस इस नौकरशाही ने जनता जनार्दन के मन मस्तिष्क पर अपनी कर्मण्यता नहीं बल्कि अकर्मण्यता की वजह से छाप छोड़ी है | आजादी के बाद कुछेक क्रांतिकारी नौकरशाहों के अपवादों को छोड़ दें तो सरदार पटेल द्वारा स्टील फ्रेम कहकर अभिहित की जाने वाली(अब यह अलमुनियम फ्रेम में बदल गई है) नौकरशाही अपनी राजनीतिक जी हजुरी,अकर्मण्यता को लपेटे पूरे शानो शौकत के साथ बरक़रार है | दरअसल यह प्रजाति शक्ति और अकर्मण्यता का अद्भुत सम्मिश्रण है | इसकी शक्ति का पुंज राजनीतिक वर्ग है | हालाँकि राजनीतिक वर्ग भी कभी-कभी इससे खफा हो जाता है | हमारे एक पूर्व प्रधानमंत्री ने इस संपूर्ण प्रजाति के बारे में कहा था कि अगर मेरा वश चले तो मैं इन सबको गोली मार दूँ | खैर राजनीतिज्ञों और नौकरशाही के बीच की यह नूराकुश्ती तमाम शिकवे शिकायतों के साथ चलती रहती है |
                                         अब हम आते हैं इसके दूसरे पहलु पर | इस प्रजाति के अधिकांश जंतु जो नेताओं के तलवे चाटते हैं,नियम कानून की आढ़ में फाइलों पर कुंडली मारे बैठे रहते हैं उन्हें इसके प्रतिफल के रूप में मिलती है मनचाही पोस्टिंग,बिना कर्तव्यों का निर्वहन किए अधिकारों का रौब आदि| यह वो वर्ग है जो कहने को तो नौकरशाही का प्रतिनिधित्व करता है लेकिन इस प्रजाति को नौकरशाही की जगह नौकरगिरी वर्ग कहें तो अतिशयोक्ति ना होगी | समय के साथ-साथ यह वर्ग और मजबूत होता जा रहा है | इस प्रजाति का दूसरा वर्ग और संभवतः जिसके कारण लोगों का नौकरशाही में थोड़ा बहुत विश्वास बचा है अपनी पोस्टिंग के बाद अपना पूरा सामान नहीं खोलता की पता नहीं कब तबादला हो जाए | इनकी कर्तव्यनिष्ठा पर हमेशा बेईमान और भ्रष्टाचारी हावी रहते हैं | आखिर यह वर्ग ऐसा क्या करता है ?कुछ नहीं केवल ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के वायरस का इंजेक्शन लेकर सरकारी नीतियों को कार्यान्वित करते हैं | जनता को सरकार के होने का अहसास दिलाते हैं | इसी वायरस के असर को ख़त्म करने के लिए राजनीतिक वर्ग निलंबन,तबादला,प्रताड़ना जैसे अनेकों एंटी वायरस का प्रयोग करते हैं | अशोक खेमका,दुर्गा शक्ति नागपाल,पूर्व में टी.एन.शेषन,जी आर खैरनार,किरण बेदी आदि गिने चुने लोग इसी ईमानदारी के वायरस से ग्रसित प्रजाति हैं जो राजनीतिक आकाओं को बिलकुल नहीं सुहाती | तो क्या हमारा 67 वर्षीय लोकतंत्र इसी माई-बाप वाली प्रजाति के रहमो करम पर चलेगा ? किसी ना किसी को तो बदलाव का वाहक बनना पड़ेगा | शेर के मुँह में खून का स्वाद लग चूका है,हम उसे घास पात नहीं खिला सकते लेकिन उसे नरभक्षी होने से तो रोक सकते हैं जो हर कदम पर जनता की उम्मीदों का खून पीने को आतुर हैं | इस नरभक्षी बनती जा रही प्रजाति को रोकने के लिए हमें अनेकों,शेषन,खेमका,बेदी,नागपाल चाहिए | वरना वो दिन दूर नहीं जब नौकरगिरी सही मायने वाली बची-खुची नौकरशाही का भी खात्मा कर देगी

                                                     

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