आतंकवाद और हम
आज पुनः आतंकवाद नें हमपर विजय पाई है
किसी की मांग उजड़ी है
तो कहीं सुनी कलाई है
कहीं शोणित की गंगा
तो कहीं सिसकियों की यमुना बहाई है
कभी गुलाबी नगरी
तो कभी बुद्ध भूमि
धमाकों से थर्राई है |
एक तरफ हम कहते हैं
कि हम सृष्टि के सर्वश्रेष्ट प्राणी हैं
और मनुष्यता के नाम पर प्रगतिशील भी
लेकिनअफ़सोस कि
एक बड़े लोकतंत्र का स्वामी
अपनत्व कि आग में जल रहा है |
हम तो केवल
इतना जानते हैं कि
हम केवल वादे करना जानते हैं
और उसको निभाने की शक्ति है नगण्य |
हमें अपना अंतर्मन भी सुनाई नहीं देता ,
कि मौत का मातम कितना शर्मसार होता है
और उसे पनाह देने का परिणाम
मरघट का सा हो सकता है |
सच है
मनुष्यता जीवन देने में है,
लेने में नहीं क्योंकि यही है आर्षवाणी |
Nice... Lenin likhana aasan Thai par apnana mushkil
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