Tuesday 15 October 2013

जीवन, मृत्यु

2 comments
 जीवन, मृत्यु 
अपनी शैया पर लेटे
स्याह अँधेरे में
आसमान की तरफ देखता
असंख्य तारों का
मैं ले रहा था  साक्षात्कार
ज्ञान की चासनी में लपेटे मेरे प्रश्न और उनके आसमानी उत्तर
मुझे आनंद के सागर की सैर करा रहे थे
भूल गया था मैं उस वक़्त
सूर्य की पहली लालिमा और उसके प्रभाव को
जीवन भी तो ऐसा ही है
उस रात्रि के चमकते तारे की तरह
जब तक मृत्यु रूपी सूर्य की पहली किरण
उसे अपने आगोश में ना भर ले
हालाँकि उन असंख्य तारों में
विरले होते हैं,
जो सुबह तक दृष्टिगोचर होते हैं

उनकी चमक लोगों के मानस पटल पर लंबे अरसे तक अंकित रहती है
नहीं चाहिए मुझे चौरासी लाख योनि
ना ही कामना करता हूँ मैं मोक्ष
की,इसी जन्म में मैं साकार करना चाहता हूँ
अपने होने और उसकी चमक को |

2 comments:

  1. Bhai yo mare palle na parya.........

    Maut To Naam Se Badnaam Hui Warna, Taqleef To Zindagi Diya Karti Hai…!

    ReplyDelete