Friday 11 October 2013

छाता और आम आदमी

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छाता और आम आदमी 

सुबह जब आँख खुली तो देखा इन्द्र देवता अपने समस्त अवयवों के साथ मौजूद हैं| ,

वैसे कल की गर्मी से यह एहसास हो चूका था की आज किसी भी वक़्त बारिश की बूंदें तपती धरती को अपने आगोश में लेंगी | 

बारिश की बूंदों को देखकर कुछ देर के लिए मै भूल गया की मुझे कार्यालय भी जाना है, एकबारगी मन हुआ की ना जाऊ,फिर पापी पेट ने दस्तक दी और मै बिलकुल वैसे तैयार हो गया जैसे चुनाव के पहले नेतागण होते हैं | 

कर्म के समर में कूदने ,पर अजीब मुसीबत थी चार चक्रीय वाहन है नहीं,त्रि चक्रीय वाहन से जाने से बेहतर था पैदल जाऊ,लेकिन पूरी तरह भींग के जाना नहीं चाहता था,फिर मुझे याद आया छाता| 

बिल्कुल वैसे जैसे चुनावों के वक़्त नेता और राजनीतिक दल आम आदमी को खोजता है |

बड़े प्यार से मैंने छाते को देखा , उसे भी आश्चर्य हुआ की आज मै उसे इतनी तवज्जो क्यों दे रहा हूँ |

खैर रास्ते भर मैंने उसे अपने शरीर से अलग नहीं होने दिया,क्योंकि बारिश इसकी इजाजत नहीं दे रहा था |

हवा का झोंका जिधर से ज्यादा होता मै छाते को उधर मोड़ रहा था| मै सोच रहा था छाते और आम आदमी की किस्मत भी तो एक जैसी होती है। 

बारिश,धुप  और चुनाव के वक़्त दोनों सबसे ज्यादा प्रासंगिक होते हैं। 

बारिश,धुप और चुनाव ख़त्म फिर किसी को इनकी सुध नहीं रहती ।

मेरा कार्यालय आ गया और बारिश भी ख़त्म हो गई थी ।

अन्दर आते ही मैंने सुरेश से कहा इसे मोड़ के रख दो अब कुछ दिनों तक इसकी जरुरत नहीं पड़ेगी । 

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